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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी प्रथम प्रश्नपत्र - हिन्दी काव्य का इतिहास

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2677
आईएसबीएन :0

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हिन्दी काव्य का इतिहास

प्रश्न- रीतिकालीन हिन्दी कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों या विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।

अथवा
क्या रीतिकालीन कविता दरबारी होती हुए भी लोक जीवन से जुड़ी है? अपने विचार व्यक्त कीजिए।

उत्तर -

रीतिकालीन साहित्य की सृष्टि सामन्ती वातावरण में हुई। उस समय के राजदरबारी कवि से स्वान्त सुखाय रचना की आशा भी नहीं की जा सकती थी, कवि की समान्त अन्तर चेतना सुरा सुन्दरी एवं सुरम्ही के इर्द-गिर्द थी। दरबारी वेश्याओं की घुँघुरुओं की ध्वनि को छोड़कर यह समाज, समाज की अन्य पीड़ा अनुभव करने को तैयार ही नहीं हुआ। कवियों ने अपनी पूरी शक्ति नारी का चित्रण करने में लगा दी। अधिकांश कवियों ने रस अलंकार और नायिका भेद के लक्षण - उदाहरण प्रस्तुत करते हुए काव्य की रचना की, इन कवियों को रीतिबद्ध कवि कहा जाता है। केशवदास, मतिराम, चिन्तामणि, देव, पद्माकर, भिखारीदास आदि इस युग के प्रसिद्ध रीतिबद्ध कवि हैं। इस युग में कुछ ऐसे भी कवि हुए जिन्होंने अलंकार एवं नायिका भेद आदि के लक्षण नहीं लिखे बल्कि उनके आधार पर काव्य रचना की। ऐसे कवियों को विद्वानों ने रीतिसिद्ध कवि कहा है। इस युग में कुछ कवियों ने हृदय की प्रेममयी भावना को अभिव्यक्त करते हुए काव्य रचना की सहज स्वाभाविक पद्धति अपनायी। इन कवियों को रीति मुक्त कवि कहा जाता है। रीतिसिद्ध कवियों में बिहारी और रीतिमुक्त कवियों में घनानन्द ठाकुर, आलम, बोधा आदि अधिक प्रसिद्ध हैं। भूषण ने वीर काव्य की सुन्दर रचना की रीतिकाल का प्रमुख विषय श्रृंगार रहा। इसलिए आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र जैसा कुछ विद्वान इसे शृंगार काव्य कहना अधिक उपयुक्त मानते हैं। हिन्दी साहित्य के इस युग में राधा और कृष्ण का लीला रूप कवित्त और सवैयों में रस, अलंकार और नायक-नायिका का प्रेम चित्रण के रूप में चित्रित होने लगा। वास्तव में हिन्दी की रीति साहित्य संस्कृत रीति- साहित्य, अलंकृत सतसई, संस्कृत के भक्तपरक मुक्तकों और कामशास्त्र की मिली जुली परम्परा का विकास है। रस, अलंकार, काव्यशास्त्र आदि की प्रधानता के कारण इस युग को रीतिकाल कहा जाता है। रीतिकाल, की सामान्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं

(1) लक्षण ग्रन्थों की रचना - रीतिकाल में कवि - कर्म और आचार्य-कर्म एक साथ चलते रहे। रीतिमुक्त कवियों को छोड़कर प्रायः इस काल के सभी कवियों ने लक्षण-ग्रन्थों की रचना की है। इन ग्रन्थों में संस्कृत के काव्यशास्त्र की परम्परा पर हिन्दी मे रस, अलंकार, नायिका भेद आदि के लक्षण और उदाहरण प्रस्तुत किये गये। कवि राजाओं के आश्रित थे। वे लक्षण ग्रन्थों का निर्माण कर स्वयं को आचार्य के रूप में प्रस्तुत करने के अभिलाषी थे। आचार्य का पद पाने के लिए लक्षण ग्रन्थों की रचना आवश्यक मानी जाती थी। केशव, चिन्तामणि, मतिराम, देव, कुलपति, पद्माकर, भिखारीदास आदि इस युग के प्रसिद्ध आचार्य कवि हैं। चिन्तामणि का कविकुल कल्पतरु, महाराज जसवन्त सिंह की भाषा- भूषण, केशवदास द्वारा रचित कविप्रिया, रसिकप्रिया, देव का भाव-विलास, मतिराम का रसराज, मंडन का रस - विलास, श्रीपति का रस सागर, पद्माकर का जगत् विनोद, रसलीन का अंगदर्पण, प्रताप साहि का काव्य विलास सूरति मिश्र की अलंकार माला, भूषण का शिवराज भूषण तथा भिखारीदास का काव्य निर्णय इस युग के सुप्रसिद्ध लक्षण-ग्रन्थ है। आचार्य कवि काव्यशास्त्रीय विवेचन में कोई विशेष मौलिकता नहीं दिखा पाये। उन्होंने प्रायः संस्कृत के काव्यशास्त्रीय ग्रन्थों से लक्षण लेकर उल्टा-सीधा अनुवाद कर डाला, जिससे कई स्थानों पर इनके कारण भ्रान्ति उत्पन्न हुई। काव्यशास्त्र की दृष्टि से इनका अधिक महत्व नहीं माना जा सकता, परन्तु जहाँ तक काव्य का सम्बन्ध है, इन्होंने बड़ी ही सरस रचना की है। इन्होंने रसों और अलंकारों के बहुत ही सरस और हृदयग्राही उदाहरण अत्यन्त प्रचुर परिणाम में प्रस्तुत किये हैं। अलंकारों की अपेक्षा इनका मन नायिका भेद में अधिक रमा है। इन कवियों ने नायिका भेद का इतना विस्तार किया कि नायिकाओं के अंगों के वर्णन के लिए नख-शिख के रूप में कितने स्वतन्त्र ग्रन्थ रच डाले। वस्तुतः रीतिकाल का कवि पहले भावुक और कोमल भावनाओं का चितेरा है। आचार्य कर्म तो उसे परम्परावश निभाना पड़ा।

(2) श्रृंगार रस की प्रधानता - शृंगार वर्णन रीतिकाव्य का प्रमुख प्रतिपाद्य है। यद्यपि उनका वर्णन नायिका भेद, नख-शिख वर्णन, अलंकार आदि का लक्षण प्रस्तुत करना था। उनके प्रमुख माध्यम से श्रृंगार का प्रतिपादन किया। रीतिबद्ध व रीतिमुक्त कवियों का प्रधान वर्ण्य विषय श्रृंगार ही रहा। शृंगार के दोनों पक्षों संयोग-श्रृंगार के चित्रण की ही प्रधानता रही। कवियों की दृष्टि नायिका के शरीर के उभरे हुए अंगों पर ही मुख्य रूप से केन्द्रित रही। उदाहरणार्थ 

अपने अंग के जानि के, यौवन नृपति प्रवीन।
स्तन मन नैन नितम्ब को, बड़ो इजाफा कीन।

(3) नारी सम्बन्धी दृष्टिकोण - रीतिकालीन कवियों की दृष्टि में नारी भोग-विलास का साधन मात्र थी। इन कवियों ने नारी के सौन्दर्य का अद्भुत वर्णन किया है। नारी के प्रेममय नेत्रों, नुकीली नासिका, रसीले अधरों, पुष्ट उरोजों और स्थूल नितम्बों के वर्णन में कवियों ने प्रतिभा प्रदर्शित की। नारी के प्रति सामन्ती दृष्टिकोण भी इस युग के काव्य में उपलब्ध होता है। इस युग मे रति और 'मुक्ति' पर्यायवाची माने जाते थे। कवियों ने नारी के नख-शिख का वर्णन करने मे अपनी प्रतिभा का पूरा उपयोग किया। नारी के 'नायिका' रूप का चित्रण इस युग के काव्य की प्रमुख विशेषता रही। उदाहरणार्थ रति के आनन्द में डूबी नायिका को चार घड़ी बाद अपने कटिबन्ध और बाल संभालने का होश आता है।

रीति रची विपरीत रची रति प्रीतम संग अनंग झरी में।
त्यों पद्माकर टूटे हरा ते सरासर सेज परे सिगरी में।
यों करि केलि विमोहित है रही, आनन्द की सुधरी उधरी में,
नीवीं न बार सम्हारिबे की, सुभई, सुधि नारि को चारधरी में।

(4) प्रकृति चित्रण - इस युग के काव्य में प्रकृति के उद्दीपन रूप का विशेष रूप से चित्रण किया गया है। दरबारी वातावरण में रहने के कारण कवियों की दृष्टि प्रकृति के उन्मुक्त क्षेत्र की ओर गई ही नहीं, अतः प्रकृति का चित्रण श्रृंगार की सहायक सामग्री के रूप में किया गया। प्रकृति का आलम्बन रूप में चित्रण रीतिकालीन काव्य में नहीं के बराबर है। बसन्त ऋतु का वर्णन करते हुए पद्माकर कहते है

फूलन में केलिन में कछारन मे कुंजन में,
क्यारिन में कलित कलीन किलकन्त है।
कहे पद्माकर पराग हूँ मैं पौन हूँ मैं,

(5) अलंकारों का विशेष प्रयोग - रीतिकाल के सभी कवियों ने अपनी रचनाओं में अलंकारों का सुन्दर प्रयोग किया है। बहुत से रीति कवियों ने अलंकारों के लक्षण व उदाहरण प्रस्तुत किये हैं। रीतिसिद्ध और रीतिमुक्त कवियों के काव्य में भी अलंकारों का सौन्दर्य देखते ही बनता है। बिहारी के काव्य में अलंकारों का प्रयोग मुख्य रूप से भाव सौन्दर्य की वृद्धि के लिए किया गया है। यमक अलंकार का एक उदाहरण दृष्टव्य है :

कनक कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय।
या खाये बौराय जग वा पाये बौराय ॥

इस युग में अलंकार की प्रवृत्ति इतनी प्रधान थी कि भूषण जैसे वीर रस के महाकवि ने भी अपने काव्य में अलंकारों का भरपूर प्रयोग किया है।

(6) सौन्दर्य वर्णन - रीतिकालीन काव्य में सौन्दर्य को काव्य के एक अभिन्न अंग के रूप में स्वीकार किया गया है। रीतिकालीन युग में नारी सौन्दर्य की खान मानी जाती थी। इस युग के कवियों में नारी क रूप सुधा का छककर पान किया और नारी सौन्दर्य के विविध चित्र प्रस्तुत किये। आँखों का सौन्दर्य वर्णन करते हुए बिहारी कहते हैं :

चमचमात चंचल नयन, बिच घूंघट पट छीन,
मानहुं सुरसरिता बिमल, उच्छरत जल जुग मीन।

रीतिमुक्त कवियों ने भी नारी सौन्दर्य के अद्भुत चित्र अंकित किये हैं।

(7) रीतिमुक्त काव्य - इस युग में अनेक कवि ऐसे भी हुऐ, जिन्होंने लीक से हटकर काव्य रचना की। इन कवियों में प्रेम की पीर के गायक घनानन्द, वीर रस के महाकवि भूषण और नीति सम्बन्धी काव्य रचना करने वाले गिरिधर कविराय आदि प्रमुख हैं।

इस युग में कुछ कवियों ने धार्मिक रचनाएं भी की हैं। नागरीदास अलबेली अलि, भगवत रसिक, श्री हठी और ब्रजवासी दास आदि कवियों ने इस युग में धार्मिक ग्रन्थों की रचना की है। रीतिकालीन रीतिमुक्त कवियों में घनानन्द ने प्रेम की पीर का हृदयग्राही चित्रण किया है। इस युग के कवियों में भूषण का स्थान भी अप्रतिम है। वीर शिरोमणि शिवाजी जैसे आश्रयदाता को पाकर भूषण ने हिन्दू जाति के हृदय में वीरता का जातीय गौरव की भावनाओं को जगाने का प्रयास किया। भूषण ने शिवा बावनी में शिवाजी की दानशीलता, वीरता और धर्मरक्षा की भावना का सुन्दर निरूपण किया है।

(8) मुक्तक काव्य की प्रधानता - रीतिकाल में अधिकांश कवियों ने मुक्तक शैली में ही काव्य रचना की। जीवन व्यापक रूप को उसकी विविध दशाओं के चित्रण का अपना लक्ष्य बनाकर दरबार के कृत्रिम वातावरण में रहने के कारण इन कवियों के लिए प्रबन्ध काव्य रचना की कोई गुंजाइश न थी। वस्तुतः रीतिकाल मुक्तक काव्य शैली के लिए प्रसिद्ध है। केशवदास द्वारा रचित रामचन्द्रिका रीतिकाल का प्रसिद्ध प्रबन्ध काव्य है। कुछ अन्य कवियों ने भी इस युग में प्रबन्ध काव्यों की रचना की है, परन्तु मुख्य रूप से मुक्तक शैली के प्रति कवियों का झुकाव रहा। वास्तव में इस युग के कवि राजाओं के दरबार में कविता सुनाकर यश और धन प्राप्त करने के अभिलाषी थे। ऐसी स्थिति में मुक्तक काव्य शैली की रचना की प्रधानता स्वाभाविक थी।

भाषा शैली - रीतिकालीन साहित्य मुख्य रूप से ब्रजभाषा में लिखा गया है। ब्रजभाषा माधुर्य के लिए प्रसिद्ध है। इस युग के कवियों की भाषा में चित्रात्मकता का अनूठा निर्वाह मिलता है। भाषा में चित्रात्मकता के सौन्दर्य का एक उदाहरण दृष्टव्य है :

फाग की भीर अलीरन में गहि, गोविन्द लै गई भीतर गोरी।
भाई करी मन की पद्माकर ऊपर नाम अबीर की झोरी।
नैन नचाई कही मुसकाई, लला फिर आइयौ खेलन होरी ॥

इस युग के काव्य की भाषा में लक्षण एवं व्यंजना शब्द शक्तियों का सुन्दर निर्वाह है। व्यंजना शक्ति का एक उदाहरण इस प्रकार है -

पलन पीक अंजन अधर, दिये महावर भाल।
आजु मिले सो करि, भले बने हो लाल।

निष्कर्ष - इस युग के कवियों ने दोहा, सवैया और कवित्त छन्द का अधिक प्रयोग किया है। डॉ. भागीरथ मिश्र के अनुसार शब्द को खोजना, उसका शोधकर, माँज का प्रयोग करना, उसके भीतर नाद सौन्दर्य, अर्थ चमत्कार और मुक्ति वैचित्य भरना यह सब रीति कवियों की सामान्य विशेषता है। वर्ण मैत्री, वृत्ति, गुण के समावेश द्वारा उक्ति वैचित्य और सहण रमणीयता का गुण अपने काव्य में भर देने में ही इन कवियों की सफलता, कुशलता और प्रभाव हैं ...। इनके एक-एक शब्द में मणि माणिक्य के समान चमक और आभा है।

अन्त में कहा जा सकता है कि रीतिकाल शृंगार-चित्रण व उत्कृष्टता की दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण है। सौन्दर्य वर्णन की दृष्टि से इस काव्यधारा को बेजोड़ कहा जा सकता है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- इतिहास क्या है? इतिहास की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  2. प्रश्न- हिन्दी साहित्य का आरम्भ आप कब से मानते हैं और क्यों?
  3. प्रश्न- इतिहास दर्शन और साहित्येतिहास का संक्षेप में विश्लेषण कीजिए।
  4. प्रश्न- साहित्य के इतिहास के महत्व की समीक्षा कीजिए।
  5. प्रश्न- साहित्य के इतिहास के महत्व पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  6. प्रश्न- साहित्य के इतिहास के सामान्य सिद्धान्त का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  7. प्रश्न- साहित्य के इतिहास दर्शन पर भारतीय एवं पाश्चात्य दृष्टिकोण का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  8. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा का विश्लेषण कीजिए।
  9. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा का संक्षेप में परिचय देते हुए आचार्य शुक्ल के इतिहास लेखन में योगदान की समीक्षा कीजिए।
  10. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन के आधार पर एक विस्तृत निबन्ध लिखिए।
  11. प्रश्न- इतिहास लेखन की समस्याओं के परिप्रेक्ष्य में हिन्दी साहित्य इतिहास लेखन की समस्या का वर्णन कीजिए।
  12. प्रश्न- हिन्दी साहित्य इतिहास लेखन की पद्धतियों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  13. प्रश्न- सर जार्ज ग्रियर्सन के साहित्य के इतिहास लेखन पर संक्षिप्त चर्चा कीजिए।
  14. प्रश्न- नागरी प्रचारिणी सभा काशी द्वारा 16 खंडों में प्रकाशित हिन्दी साहित्य के वृहत इतिहास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  15. प्रश्न- हिन्दी भाषा और साहित्य के प्रारम्भिक तिथि की समस्या पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- साहित्यकारों के चयन एवं उनके जीवन वृत्त की समस्या का इतिहास लेखन पर पड़ने वाले प्रभाव का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  17. प्रश्न- हिन्दी साहित्येतिहास काल विभाजन एवं नामकरण की समस्या का वर्णन कीजिए।
  18. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास का काल विभाजन आप किस आधार पर करेंगे? आचार्य शुक्ल ने हिन्दी साहित्य के इतिहास का जो विभाजन किया है क्या आप उससे सहमत हैं? तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए।
  19. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास में काल सीमा सम्बन्धी मतभेदों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
  20. प्रश्न- काल विभाजन की उपयोगिता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  21. प्रश्न- काल विभाजन की प्रचलित पद्धतियों को संक्षेप में लिखिए।
  22. प्रश्न- रासो काव्य परम्परा में पृथ्वीराज रासो का स्थान निर्धारित कीजिए।
  23. प्रश्न- रासो शब्द की व्युत्पत्ति बताते हुए रासो काव्य परम्परा की विवेचना कीजिए।
  24. प्रश्न- निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए - (1) परमाल रासो (3) बीसलदेव रासो (2) खुमान रासो (4) पृथ्वीराज रासो
  25. प्रश्न- रासो ग्रन्थ की प्रामाणिकता पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  26. प्रश्न- विद्यापति भक्त कवि है या शृंगारी? पक्ष अथवा विपक्ष में तर्क दीजिए।
  27. प्रश्न- "विद्यापति हिन्दी परम्परा के कवि है, किसी अन्य भाषा के नहीं।' इस कथन की पुष्टि करते हुए उनकी काव्य भाषा का विश्लेषण कीजिए।
  28. प्रश्न- विद्यापति का जीवन-परिचय देते हुए उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  29. प्रश्न- लोक गायक जगनिक पर प्रकाश डालिए।
  30. प्रश्न- अमीर खुसरो के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  31. प्रश्न- अमीर खुसरो की कविताओं में व्यक्त राष्ट्र-प्रेम की भावना लोक तत्व और काव्य सौष्ठव पर प्रकाश डालिए।
  32. प्रश्न- चंदबरदायी का जीवन परिचय लिखिए।
  33. प्रश्न- अमीर खुसरो का संक्षित परिचय देते हुए उनके काव्य की विशेषताओं एवं पहेलियों का उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
  34. प्रश्न- अमीर खुसरो सूफी संत थे। इस आधार पर उनके व्यक्तित्व के विषय में आप क्या जानते हैं?
  35. प्रश्न- अमीर खुसरो के काल में भाषा का क्या स्वरूप था?
  36. प्रश्न- विद्यापति की भक्ति भावना का विवेचन कीजिए।
  37. प्रश्न- हिन्दी साहित्य की भक्तिकालीन परिस्थितियों की विवेचना कीजिए।
  38. प्रश्न- भक्ति आन्दोलन के उदय के कारणों की समीक्षा कीजिए।
  39. प्रश्न- भक्तिकाल को हिन्दी साहित्य का स्वर्णयुग क्यों कहते हैं? सकारण उत्तर दीजिए।
  40. प्रश्न- सन्त काव्य परम्परा में कबीर के योगदान को स्पष्ट कीजिए।
  41. प्रश्न- मध्यकालीन हिन्दी सन्त काव्य परम्परा का उल्लेख करते हुए प्रमुख सन्तों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  42. प्रश्न- हिन्दी में सूफी प्रेमाख्यानक परम्परा का उल्लेख करते हुए उसमें मलिक मुहम्मद जायसी के पद्मावत का स्थान निरूपित कीजिए।
  43. प्रश्न- कबीर के रहस्यवाद की समीक्षात्मक आलोचना कीजिए।
  44. प्रश्न- महाकवि सूरदास के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की समीक्षा कीजिए।
  45. प्रश्न- भक्तिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ या विशेषताएँ बताइये।
  46. प्रश्न- भक्तिकाल में उच्चकोटि के काव्य रचना पर प्रकाश डालिए।
  47. प्रश्न- 'भक्तिकाल स्वर्णयुग है।' इस कथन की मीमांसा कीजिए।
  48. प्रश्न- जायसी की रचनाओं का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  49. प्रश्न- सूफी काव्य का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  50. प्रश्न- निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए -
  51. प्रश्न- तुलसीदास कृत रामचरितमानस पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
  52. प्रश्न- गोस्वामी तुलसीदास के जीवन चरित्र एवं रचनाओं का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  53. प्रश्न- प्रमुख निर्गुण संत कवि और उनके अवदान विवेचना कीजिए।
  54. प्रश्न- कबीर सच्चे माने में समाज सुधारक थे। स्पष्ट कीजिए।
  55. प्रश्न- सगुण भक्ति धारा से आप क्या समझते हैं? उसकी दो प्रमुख शाखाओं की पारस्परिक समानताओं-असमानताओं की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
  56. प्रश्न- रामभक्ति शाखा तथा कृष्णभक्ति शाखा का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  57. प्रश्न- हिन्दी की निर्गुण और सगुण काव्यधाराओं की सामान्य विशेषताओं का परिचय देते हुए हिन्दी के भक्ति साहित्य के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  58. प्रश्न- निर्गुण भक्तिकाव्य परम्परा में ज्ञानाश्रयी शाखा के कवियों के काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिए।
  59. प्रश्न- कबीर की भाषा 'पंचमेल खिचड़ी' है। सउदाहरण स्पष्ट कीजिए।
  60. प्रश्न- निर्गुण भक्ति शाखा एवं सगुण भक्ति काव्य का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  61. प्रश्न- रीतिकालीन ऐतिहासिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनैतिक पृष्ठभूमि की समीक्षा कीजिए।
  62. प्रश्न- रीतिकालीन कवियों के आचार्यत्व पर एक समीक्षात्मक निबन्ध लिखिए।
  63. प्रश्न- रीतिकालीन प्रमुख प्रवृत्तियों की विवेचना कीजिए तथा तत्कालीन परिस्थितियों से उनका सामंजस्य स्थापित कीजिए।
  64. प्रश्न- रीति से अभिप्राय स्पष्ट करते हुए रीतिकाल के नामकरण पर विचार कीजिए।
  65. प्रश्न- रीतिकालीन हिन्दी कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों या विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  66. प्रश्न- रीतिकालीन रीतिमुक्त काव्यधारा के प्रमुख कवियों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार दीजिए कि प्रत्येक कवि का वैशिष्ट्य उद्घाटित हो जाये।
  67. प्रश्न- आचार्य केशवदास का संक्षिप्त जीवन परिचय देते हुए उनकी काव्यगत विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  68. प्रश्न- रीतिबद्ध काव्यधारा और रीतिमुक्त काव्यधारा में भेद स्पष्ट कीजिए।
  69. प्रश्न- रीतिकाल की सामान्य विशेषताएँ बताइये।
  70. प्रश्न- रीतिमुक्त कवियों की विशेषताएँ बताइये।
  71. प्रश्न- रीतिकाल के नामकरण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  72. प्रश्न- रीतिकालीन साहित्य के स्रोत को संक्षेप में बताइये।
  73. प्रश्न- रीतिकालीन साहित्यिक ग्रन्थों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  74. प्रश्न- रीतिकाल की सांस्कृतिक परिस्थितियों पर प्रकाश डालिए।
  75. प्रश्न- बिहारी के साहित्यिक व्यक्तित्व की संक्षेप मे विवेचना कीजिए।
  76. प्रश्न- रीतिकालीन आचार्य कुलपति मिश्र के साहित्यिक जीवन का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  77. प्रश्न- रीतिकालीन कवि बोधा के कवित्व पर प्रकाश डालिए।
  78. प्रश्न- रीतिकालीन कवि मतिराम के साहित्यिक जीवन पर प्रकाश डालिए।
  79. प्रश्न- सन्त कवि रज्जब पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  80. प्रश्न- आधुनिककाल की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, सन् 1857 ई. की राजक्रान्ति और पुनर्जागरण की व्याख्या कीजिए।
  81. प्रश्न- हिन्दी नवजागरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  82. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के आधुनिककाल का प्रारम्भ कहाँ से माना जाये और क्यों?
  83. प्रश्न- आधुनिक काल के नामकरण पर प्रकाश डालिए।
  84. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों की सोदाहरण विवेचना कीजिए।
  85. प्रश्न- भारतेन्दु युगीन काव्य की भावगत एवं कलागत सौन्दर्य का वर्णन कीजिए।
  86. प्रश्न- भारतेन्दु युग की समय सीमा एवं प्रमुख साहित्यकारों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  87. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन काव्य की राजभक्ति पर प्रकाश डालिए।
  88. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन काव्य का संक्षेप में मूल्यांकन कीजिए।
  89. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन गद्यसाहित्य का संक्षेप में मूल्यांकान कीजिए।
  90. प्रश्न- भारतेन्दु युग की विशेषताएँ बताइये।
  91. प्रश्न- द्विवेदी युग का परिचय देते हुए इस युग के हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में योगदान की समीक्षा कीजिए।
  92. प्रश्न- द्विवेदी युगीन काव्य की विशेषताओं का सोदाहरण मूल्यांकन कीजिए।
  93. प्रश्न- द्विवेदी युगीन हिन्दी कविता की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
  94. प्रश्न- द्विवेदी युग की छः प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
  95. प्रश्न- द्विवेदीयुगीन भाषा व कलात्मकता पर प्रकाश डालिए।
  96. प्रश्न- छायावाद का अर्थ और स्वरूप परिभाषित कीजिए तथा बताइये कि इसका उद्भव किस परिवेश में हुआ?
  97. प्रश्न- छायावाद के प्रमुख कवि और उनके काव्यों पर प्रकाश डालिए।
  98. प्रश्न- छायावादी काव्य की मूलभूत विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
  99. प्रश्न- छायावादी रहस्यवादी काव्यधारा का संक्षिप्त उल्लेख करते हुए छायावाद के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
  100. प्रश्न- छायावादी युगीन काव्य में राष्ट्रीय काव्यधारा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  101. प्रश्न- 'कवि 'कुछ ऐसी तान सुनाओ, जिससे उथल-पुथल मच जायें। स्वच्छन्दतावाद या रोमांटिसिज्म किसे कहते हैं?
  102. प्रश्न- छायावाद के रहस्यानुभूति पर प्रकाश डालिए।
  103. प्रश्न- छायावादी काव्य में अभिव्यक्त नारी सौन्दर्य एवं प्रेम चित्रण पर टिप्पणी कीजिए।
  104. प्रश्न- छायावाद की काव्यगत विशेषताएँ बताइये।
  105. प्रश्न- छायावादी काव्यधारा का क्यों पतन हुआ?
  106. प्रश्न- प्रगतिवाद के अर्थ एवं स्वरूप को स्पष्ट करते हुए प्रगतिवाद के राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक तथा साहित्यिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  107. प्रश्न- प्रगतिवादी काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियों का वर्णन कीजिए।
  108. प्रश्न- प्रयोगवाद के नामकरण एवं स्वरूप पर प्रकाश डालते हुए इसके उद्भव के कारणों का विश्लेषण कीजिए।
  109. प्रश्न- प्रयोगवाद की परिभाषा देते हुए उसकी साहित्यिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  110. प्रश्न- 'नयी कविता' की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  111. प्रश्न- समसामयिक कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों का समीक्षात्मक परिचय दीजिए।
  112. प्रश्न- प्रगतिवाद का परिचय दीजिए।
  113. प्रश्न- प्रगतिवाद की पाँच सामान्य विशेषताएँ लिखिए।
  114. प्रश्न- प्रयोगवाद का क्या तात्पर्य है? स्पष्ट कीजिए।
  115. प्रश्न- प्रयोगवाद और नई कविता क्या है?
  116. प्रश्न- 'नई कविता' से क्या तात्पर्य है?
  117. प्रश्न- प्रयोगवाद और नयी कविता के अन्तर को स्पष्ट कीजिए।
  118. प्रश्न- समकालीन हिन्दी कविता तथा उनके कवियों के नाम लिखिए।
  119. प्रश्न- समकालीन कविता का संक्षिप्त परिचय दीजिए।

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